Saturday 24 December 2011

Mahatma Jyotiba Phule

महात्मा ज्योतिबा फुले ( १८२७ - १८९० )
Jyotirao Govindrao Phule
महात्मा ज्योतिबा फुले इनका जन्म ११ अप्रैल १८२७ को महाराष्ट्र के सतारा जिल्हे में हुआ था | उनका असली  नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था | वह १९वी सदी  की एक बड़े समाजसुधारक ,सक्रिय प्रतिभागी तथा विचारक थे | उनके जीवनकाल में उन्हीने  शिक्षा, कृषि,जाती प्रथा और समाज में महिलाओ की दर्जे में सकारात्मक नुतनीकरण लाया | उन्हें खुद इन कार्यो में महिलाओ को तथा निचली जाती के लोगो को पढ़ना बड़ा रास आता था |

महात्मा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ने के बाद १८४८  में उन्होंने पुणे में लडकियों के लिए भारत की पहली प्रशाला खोली | २४ सितंबर १८७३ को उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की | वह इस संस्था के पहले कार्यकारी व्यवस्थापक तथा कोषपाल भी थे |इस संस्था का मुख्य  उद्देश्य समाज में शुद्रो पर हो रहे शोषण तथा दुर्व्यवहार पर अंकुश लगाना था |

उनके किसानो और निचले वर्ग के लोगो  के अधिकारों लिए किये अथक परिश्रमो की वजह से उन्हें महाराष्ट्र उस सदी के समाज सुधारको की सूचि में एक विशेष स्थान प्राप्त है | फुले यह खुद से थे पुणे शहर के एक साधारण माळी समाज के एक परिवार से थे | उनके पिता यह एक सब्जी विक्रेता थे ; उनके माता का देहांत महात्मा फुले के आयु के नौवे महीने में ही हो गया था |

उनके आयुष्य में महत्वपूर्ण बदलाव तब आया जब उनके मुस्लिम तथा इसाईं पडोसीयो ने उनकी अपार बुद्धिमत्ता  को पहचानते हुए ज्योतिराव के पिता को ज्योतिराव को वहां के स्थानिक ' स्कोटीश मिशुनस हाई स्कूल ' में भर्ती करने के लिए राजी किया | थोमस पैन के 'राइटस ऑफ़ माँन ' इस पुस्तक से प्रभावित होते हुए फुलेजी  ने सामाजिक न्याय के लिए और भारतीय जातीवाद के खिलाफ अपना एक दृढ़ दृष्टिकोण बना लिया |

महात्मा फुले अंग्रेजी राज के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे क्युकी अंग्रेजी राज की वजह से भारत में न्याय और सामाजिक समानता के नए बिज बोए जा रहे थे | महात्मा फुले ने अपने जीवन में हमेशा बड़ी ही प्रबलता तथा तीव्रता से विधवा विवाह की वकालत की | उन्होंने उच्च जाती की विधवाओ के लिए १८५४ में एक घर भी बनवाया था |  दुसरो के सामने आदर्श रखने के लिए उन्होंने अपने खुद के घर के दरवाजे सभी जाती तथा वर्गों के लोगो के लिए हमेशा खुले रखे , इतना ही नहीं उन्होंने अपने कुए का पानी बिना किसी पक्षपात के सभी के लिए उपलभ्द किया |




Friday 23 December 2011

Ishwar Chandra Vidyasagar

इश्वर चन्द्र विद्यासागर ( १८२० - १८९१ )


इश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रचिलित विद्वान तथा लेखक थे | उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित किया था |


उनका जन्म २६ सितम्बर १९२० को पश्चिम बंगाल के  मिदनापुर (हुगली जिल्हा) के एक भ्रमण घराने में हुआ था | उनके पिता का नाम ठाकुरदास बनर्जी और उनकी माता का नाम भगबती देवी था | इश्वर चन्द्र ने  अपने  पिता को ही अपना गुरु मान लिया था | जीवन में उन्होंने अपनी माता की तरह परोपकारी  तथा दयालु रहना सिखा |

शिक्षण
 इश्वर चन्द्र का शिक्षण कलकत्ता में हुआ | उन्होंने १९३९ में उन्होंोंने अपनी कानून की परीक्षा सफलता से उत्तीर्ण की | सन १८४१ में इश्वर चंद्राने फोर्ट  विल्लियम कॉलेज में संस्कृत विभाग क मुख्याध्यापक के पद पर काम करना शुरू किया | भारत के आज़ादी के प्रति का भाव और  " डिरेक्टर ऑफ़ पब्लिक एदुकतिओन " के साथ उन्हके मतभेद के बाद उन्हों ने अपना इस्तीफा दे दिया | इसके बाद आर्थिक आज़ादी के लिए उन्होंने मुद्रुक तथा प्रकाशक के तौर पर बंगाली भाषा में अनेक पुस्तके लिखी |

समाजिक कल्याण
उन्होंने निर्भिड़ता से सफलतापूर्वक विधवा विवाह का अभियान चलाया | उन्होंने इस कार्य के लिए पूर्णतः अपना तन- मन अर्पण किया था | उन्होंने बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए बहुत प्रयत्न किये लेकिन वह उसमे असफल रहे | लेकिन इस हार से निराश न होते हुए उन्होंने महिलाओ के शिक्षण का अभियान सफलतापूर्वक पर किया | वह बेथूने स्कूल के प्रथम सचिव बने | उन्होंने मेट्रोपोलिटिन कॉलेज ( अब विद्यासागर कॉलेज ) की स्थापना की | इश्वर चन्द्र कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रबंध सभा के सदस्य भी रह चुके है | उन्होंने बंगाली में अनेक पाठ्यपुस्तके प्रकाशित की | बेताल्पंचाहिन्ग्सती, उपक्रमणिका, चरिताबोली , कोथामाला , बमापोरिचोय यह उनकी कुछ पुस्तके बहुत प्रचिलित है |

मृत्यु
इश्वर चन्द्र विद्यासागर की मौत २९ जुलै १८९१ को बंगाल के कर्मतोला- संताल गाँव में हुई | उनके सम्मान में भारत सरकार ने उनके चित्र का डाक टिकट भी प्रकाशित किया है |

Raja Ram Mohan Roy

राजा राम मोहन रॉय ( १७७२ - १८३३ )

राजा राम मोहन रॉय का जन्म एक प्रतिष्ठित वैश्नाविय बंगाली घराने में सन २२ मई १७७२ इ. स. को हुआ था| वह संस्कृत, पर्सियन और अंग्रेजी के प्रचिलित अभ्यासक थे| उन्हें अरबी,लातिन और ग्रीक भाषाएँ भी आती थी| उन्होंने हिन्दू धर्म की विभिन्न पुस्तकें जिन्ह्में वेड और उपनिषद् भी शामिल है| उन्होंने दुसरे धर्मो का आदर करते हुए अलग - अलग धर्मग्रंथो का भी आभ्यास किया| सन १८०५ मे उन्होंने यास्त इंडिया कंपनी मे अपनी पहली नौकरी की और सफलता से एक ऊँचे औधे तक पहुंचे| उनकी मौत सन १८३३ मे इंग्लैंड मे हुई| उस समय वो अपनी जिंदगी की सबसे प्रचिलित केस याने की मुग़ल शासक अकबर द्वितीय के लिए लाध रहे थी|

राजा राम मोहन रॉय यह नए भारत के सबसे पहले समाज सुधारक थे | इस लिए उन्हें " नए भारत का पिता" यह उपाधि दी गयी है | राजा राम मोहन रॉय सामाजिक एकता और मानवता के उसूलो को मानते थे और उनकी सोच यह हमेशा वैज्ञानिकता पर अवलंबित थी | वह पूर्व और पश्चिमी संस्कृतियों का एक अनोखा  और अचूक मिश्रण
थे|

राजा राम मोहन रॉय ने 1825 मे  भ्रमो समाज के स्थापना करते हुए  अपना जीवन सामाजिक तथा धार्मिक सुधर के कार्य मे झोक दिया | उन्होंने बहुदेववाद तथा मूर्ति पूजा की निंदा करते हुए " एक ईश्वर "की संकल्पना को प्रचिती दी | उनकी धार्मिक संकल्पंओमे हिन्दू, इस्लाम, क्रिस्ती और यूरोपीय तत्वज्ञान की सम्मुहित अनुभूति प्राप्त होती थी | उन्होंने कई प्राचीन भारतीय धार्मिक तथा तत्वज्ञान के ग्रंथो का अनुवादन बंगाली में किया |

उन्होंने जाति प्रथा पर हल्ला बोलते हुए अंग्रेजी सर्कार को " सती" जैसी अन्द्धा श्रद्धा और "बालविवाह"  जैसे सामाजिक प्रथा को बंद करने लगाया | उन्होंने महिलाओ की सामाजिक एकता , विधवा विवाह और महिलाओ के विरासिया हक्क के लिए वकालत की |

वह एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तिमत्व थे और उन्होंने सभी जगहों पर आज़ादी का समर्थन किया |